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Monday 23 May 2016

Monday 12 October 2015

डेंगू की पुर्ण जानकारी।

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कोई मच्छर काट ले तो टेंशन में न आएं। हर मच्छर डेंगू वाला नहीं होता। बुखार आ जाए तो भी घबराने की जरूरत नहीं। हर बुखार डेंगू का नहीं होता। डेंगू हो भी जाए तो पैनिक न हों। डेंगू में सिर्फ 1 फीसदी मामले ही रिस्की होते हैं। बुखार का मैनेजमेंट घर में करें। डॉक्टर से इलाज कराएं। जब तक डॉक्टर न कहे, अस्पताल में भर्ती न हों। एक्सपर्ट्स से बात करके डेंगू से बचाव और इलाज पर जानकारी दे रही हैं  शमशेर अली सिद्दीकी ...
क्या है बुखार
जब हमारे शरीर पर कोई बैक्टिरिया या वायरस हमला करता है तो हमारा शरीर अपने आप ही उसे मारने की कोशिश करता है। इसी मकसद से शरीर जब अपना टेम्प्रेचर बढ़ाता है तो उसे ही बुखार कहा जाता है। जब भी शरीर का टेम्प्रेचर नॉर्मल (98.3) से बढ़ जाए तो वह बुखार माना जाएगा। आमतौर पर छोटे बच्चों को बुखार होने पर उनके हाथ-पांव तो ठंडे रहते हैं लेकिन माथा और पेट गर्म रहते हैं इसलिए उनके पेट से उनका बुखार चेक किया जाता है। क·ई बार बुखार 104-105 डिग्री फॉरनहाइट त·क भी पहुंच जाता है। 
कहीं यह बुखार डेंगू तो नहीं
डेंगू वाले मच्छर के किसी इंसान को काटने के बाद डेंगू का वायरस इंसान के ब्लड में 2-7 दिनों तक रहता है। डेंगू बुखार के लक्षण मच्छर के काटने के 4-7 दिनों में दिखते हैं। कभी-कभी इसमें 14 दिनों का वक्त भी लगता है। बुखार अक्सर तेज होता है और दिन में 4-5 बार आता है। डेंगू बुखार तकरीबन 7-10 दिनों तक बना रहता है और अपने आप ठीक हो जाता है। बुखार से प्रभावित कुल लोगों में से 10 फीसदी को ही हॉस्पिटल ले जाने की जरूरत होती है। डेंगू के सामान्य लक्षण हैं: बुखार, तेज़ बदन दर्द, सिर दर्द खास तौर पर आंखों के पीछे, शरीर पर दाने आदि। डेंगू ऐसा भी हो सकता है कि इसके लक्षण न उभरें। ऐसे मरीज़ का टेस्ट करने पर डेंगू पॉजिटिव आता है लेकिन वह खुद-ब-खुद बिना किसी इलाज़ के ठीक हो जाता है। दूसरी तरह का डेंगू बीमारी के लक्षणों वाला होता है। यह भी तीन किस्म का होता है: क्लासिकल डेंगू फीवर, डेंगू हेमरेजिक फीवर और डेंगू शॉक सिंड्रोम। क्लासिकल डेंगू फीवर एक नॉर्मल वायरल फीवर है। इसमें तेज बुखार, बदन दर्द, तेज सिर दर्द, शरीर पर दाने जैसे लक्षण दिखते हैं। यह डेंगू 5-7 दिन के सामान्य इलाज से ठीक हो जाता है। डेंगू हेमरेजिक फीवर थोड़ा खतरनाक साबित हो सकता है। इसमें प्लेटलेट और W.B.C. की संख्या कम होने लगती है। नाक और मसूढ़ों से खून आना, शौच या उलटी में खून आना या स्किन पर गहरे नीले-काले रंग के चकत्ते जैसे लक्षण भी हो सकते हैं। डेंगू शॉक सिंड्रोम में मरीज धीरे-धीरे होश खोने लगता है, उसका बीपी और नब्ज एकदम कम हो जाती है और तेज बुखार के बावजूद स्किन ठंडी लगती है।
...ताकि पैदा न हों मच्छर
डेंगू न फैले इसके लिए इन बातों का रखें ध्यान...
पानी जमा न होने दें
- घर में किसी भी जगह में पानी को जमा न होने दे। हमेशा सूखा रखने की कोशिश करें। 
- पानी को अगर स्टोर करके रख रहे हैं तो उसे ढक कर रखें।
- आसपास के एरिया में भी पानी को जमा न होने दें। 
- फिलहाल के लिए गमलों को अवोइड करें।
- अगर जानवरों के लिए पानी डाल भी रहे हैं तो उसे हर दूसरे दिन चेंज करें। 
घर के आसपास पानी न जमा होने दें
अपनी सुरक्षा अपने हाथ
- मच्छरों से बचने के लिए पूरी बाजू के कपड़े पहने।
- आपके घर में ज्यादा मच्छर हैं तो दिन में भी मॉस्कीटो रिपेलेंट का प्रयोग करें।
- कूलर का पानी रोज बदलें या बिना पानी के कूलर चलाएं। 
- ऐसी जगहों पर जाने से बचें जहां साफ सफार्इ ना हो। 
- रात को सोने से पहले बॉडी पर क्रीम लगा लें।
- हलके रंग के कपड़े पहने की कोशिश करें। हाफ पेंट्स को इग्नोर करें।
- बेड के नीचे और कम रोशनी वालों जगहों पर मच्छर मारने वाली दवा को स्प्रे करें।
जरूरी बातें 
- फिलहाल के लिए स्ट्रीट फूड को अवोइड करें।
- पानी उबाल कर पीने की कोशिश करें। 
- फ्रेश फूड खाएं।
- साफ-सफाई पर पूरा ध्यान रखें।
- किसी से भी अपनी खाना या फिर कपड़ों को शेयर न करें।
- खाना खाने से पहले हैंड वॉश जरूर करें।
डेंगू के बचाव के लिए मच्छरों को पैदा होने से रोकना और काटने से रोकना, दोनों जरूरी हैं: कहीं भी खुले में पानी रुकने या जमा न होने दें। साफ पानी भी गंदे पानी जितना ही खतरनाक है। पानी पूरी तरह ढककर रखें। कूलर, बाथरूम, किचन आदि में जहां पानी रुका रहता है में दिन में एक बार मिट्टी का तेल डाल दें। ऐसा करने से उनमें मच्छरों के अंडे डिवेलप नही होंगे। एसी: अगर विंडो एसी के बाहर वाले हिस्से के नीचे पानी टपकने से रोकने के लिए ट्रे लगी हुई है तो उसे रोज खाली करना न भूलें। उसमें भी ब्लीचिंग पाउडर डाल कर रख सकते हैं। कूलर: इसका इस्तेमाल बंद कर दें। अगर नहीं कर सकते तो उसका पानी रोज बदलें और उसमें ब्लीचिंग पाउडर या बोरिक एसिड जरूर डालें। गमले: ये चाहे घर के भीतर हों या बाहर, इनमें पानी जमा न होने दें। गमलों के नीचे रखी ट्रे भी रोज खाली करना न भूलें। छत: छत पर टूटे-फूटे डिब्बे, टायर, बर्तन, बोतलें आदि न रखें या उलटा करके रखें। पानी की टंकी को अच्छी तरह बंद करके रखें। पक्षियों को दाना-पानी देने के बर्तन को रोज पूरी तरह से खाली करके साफ करने के बाद पानी भरें। किचन, बाथरूम: सिंक/वॉशबेसिन में भी पानी जमा न होने दें। हफ्ते में एक बार अच्छी तरह से सफाई करें। पानी स्टोर करने के बाद बर्तन पूरी तरह ढक कर रखें। बेहतर तो यह है कि गीले कपड़े से ऐसे बर्तनों को ढकें ताकि मच्छर को जगह न मिले। नहाने के बाद बाथरुम को वाइपर और पंखे की मदद से सुखा दें। ड्रॉइंगरूम: घर के अंदर सभी जगहों में हफ्ते में एक बार मच्छरनाशक दवाई का छिड़काव जरूर करें। डाइनिंग टेबल में सजाने के लिए रखे फूलों या फूलों के बर्तन में पानी रोज बदलें 
...ताकि न काटें मच्छर 
  आउटडोर में पूरी बांह की शर्ट, बूट, मोजे और फुल पैंट पहनें। खासकर बच्चों के लिए इस बात का जरूर ध्यान रखें। मच्छर गाढ़े रंग की तरफ आकर्षित होते हैं इसलिए हल्के रंग के कपड़े पहनें। तेज महक वाली परफ्यूम लगाने से बचें क्योंकि मच्छर किसी भी तरह की तेज महक की तरफ आकर्षित होते हैं। कमरे में मच्छर भगानेवाले स्प्रे, मैट्स, कॉइल्स आदि का प्रयोग करें। मस्किटो रेपलेंट को जलाते समय सावधानी बरतें। इन्हें जलाकर कमरे को 1-2 घंटे के लिए बंद कर दें। सोने से पहले खिड़की-दरवाजे खोल लें। खिड़की, दरवाजे बंद रखेंगे तो सांस की बीमारी हो सकती है। घर की मेन एंट्रेंस के बाहर लगी ट्यूब लाइट के पास मस्किटो रेपलेंट (गुडनाइट, ऑलआउट आदि) जलाकर रखें। इससे गेट खुलने पर अंदर आनेवाले मच्छरों को रोका जा सकेगा। आजकल इसे 24 घंटे जलाकर रखें ताकि मच्छर को जगह न मिले। सोने से पहले हाथ-पैर और शरीर के खुले हिस्सों पर विक्स लगाएं। इससे मच्छर पास नहीं आएंगे। एक नीबू को बीच से आधा काट लें और उसमें खूब सारे (6-7) लौंग घुसा दें। इसे कमरे में रखें। मच्छर भाग जाएंगे। मच्छरों को भगाने और मारने के लिए गुग्गुल जलाएं। लैवेंडर ऑयल की 15-20 बूंदें, 3-4 चम्मच वनीला एसेंस और चौथाई कप नीबू रस को मिलाकर एक बोतल में रखें। शरीर के खुले हिस्सों पर लगाने से पहले अच्छी तरह मिलाएं। इसे लगाने से मच्छर दूर रहते हैं। तुलसी का तेल, पुदीने की पत्तियों का रस, लहसुन का रस या गेंदे के फूलों का रस शरीर पर लगाने से भी मच्छर भागते हैं।
बढ़ाएं इम्युनिटी इम्युनिटी यानी बीमारियों से लड़ने की शरीर की क्षमता अच्छी हो तो कोई भी बीमारी आपको आसानी से दबोच नहीं पाती। इम्युनिटी बढ़ाने के लिए बैलेंस्ड डाइट लें। मौसमी फल, हरी सब्जियां, दाल, दूध-दही आदि खूब लें। हालांकि इम्युनिटी एक-दो दिन में नहीं बढ़ती। इसके लिए लंबे समय तक रुटीन का ध्यान रखना पड़ता है। खाने में हल्दी का इस्तेमाल करें। सुबह-शाम आधा-आधा छोटा चम्मच हल्दी पानी या दूध के साथ लें। तुलसी के 8-10 पत्ते शहद के साथ मिलाकर लें या तुलसी के 10 पत्तों को आधे गिलास पानी में उबालें। पानी आधा रह जाए तो उसे पी लें। विटामिन-सी से भरपूर चीजों जैसे आंवला, संतरा, मौसमी आदि रोजाना लें। आधा चम्मच अश्वगंधा सोने से पहले एक गिलास गर्म दूध के साथ लें। रोजाना 2 ताजे आंवले का रस या एक चम्मच इसका चूर्ण लें। सुबह खाली पेट लहसुन की दो कलियां ताजे पानी के साथ ले सकते हैं। बकरी का दूध पीने से भी इम्युनिटी बढ़ती है। एक कप पानी में एक चम्मच गिलोय का पाउडर या इसकी 4-5 इंच की डंडी, 2 काली मिर्च और तुलसी के 8-10 पत्ते मिलाकर पानी में उबालें और उसमें आधा नीबू मिलाकर पी लें। ऐसा महीना भर करने से किसी भी तरह का बुखार होने का खतरा कम हो जाता है। होम्योपैथिक दवा यूपाटोरियम परफोलिएटम 30 C (Eupatorium Perfoliatum) लें। बड़े 5 गोली और बच्चे 2 गोली रोजाना 3 दिन तक खाली पेट लें सकते हैं। 
डेंगू के लिए प्रमुख टेस्ट 
डेंगू के लिए 3 प्रमुख टेस्ट होते हैं: एंटिजन ब्लड टेस्ट (NS1), डेंगू एंटिबॉडी और प्लेटलेट्स काउंट। अगर बुखार के शुरुआती 1-3 दिन में टेस्ट कराना है तो NS1 करा सकते हैं, लेकिन 4-5 दिन बाद टेस्ट कराते हैं तो एंटिबॉडी टेस्ट (डेंगू सिरॉलजी) कराना बेहतर है। टोटल काउंट और WBC और RBC आदि का अलग-अलग काउंट कराना चाहिए। दिल्ली में सरकार ने NS1 डेंगू टेस्ट की कीमत 600 रुपये, डेंगू एंटिबॉडी टेस्ट 600 रुपये और प्लेटलेट्स काउंट की 50 रुपये तय कर दी है। डेंगू की लैबोरेट्री जांच में मरीज के खून में एंटिजन IgM और IgG एवं प्रोटीन NS-1 देखे जाते हैं। NS-1 की मौजूदगी से यह पता चलता है कि मरीज के अंदर डेंगू वायरस का इंफेक्शन है लेकिन जरूरी नहीं कि उसे डेंगू फीवर हो। IgM व IgG में से अगर केवल IgG पॉजिटिव है तो इसका मतलब है कि मरीज को पहले कभी डेंगू रहा है। कभी-कभी इन तीनों में से किसी के भी पॉजिटिव होने पर डॉक्टर मरीज में डेंगू का डर पैदा करके उनसे ठगी कर लेते हैं। डेंगू में प्लेटलेट्स और PCV दोनों का ध्यान रखना जरूरी है। PCV ब्लड में रेड ब्लड सेल्स का प्रतिशत बताता है। यह सेहतमंद पुरुषों में 45 फीसदी और महिलाओं में 40 फीसदी होता है। डेंगू में बढ़ सकता है। इसके बढ़ने का मतलब खून का गाढ़ा होना है। अगर PCV बढ़ रहा है तो खतरनाक है। हेल्दी आदमी के शरीर में डेढ़ से 4.5 लाख तक प्लेटलेट्स होते हैं। अगर प्लेटलेट्स 1.5 लाख से कम आएं तो घबराने की जरूरत नहीं। हर 2-3 दिन में प्लेटलेट्स का टेस्ट करवाते रहें। अगर तबियत न बिगड़े तो 5-8 दिनों में टेस्ट कराएं। इलाज से अगर प्लेटलेट्स बढ़ने लगें तो प्लेटलेट्स टेस्ट का अंतराल बढ़ा कर 14 दिन तक कर सकते हैं। एक बार 1.5 लाख से ऊपर पहुंच जाने पर तकरीबन 1 महीने पर टेस्ट कराएं। प्लेटलेट्स काउंट 3 लाख तक पहुंचने तक टेस्ट कराएं। प्लेटलेट्स गिरकर 20 हजार तक या उससे नीचे हों तो प्लेटलेट्स चढ़ाने पड़ते हैं। हालांकि अगर ब्लीडिंग नहीं है तो इससे नीचे आने पर भी कई बार प्लेटलेट्स चढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ती।
डेंगू की पाठशाला
डेंगू का वायरस मूल रूप से चार तरह का होता है। डेन1, डेन2, डेन3 और डेन4 सेरोटाइप। डेन1 और डेन3 सेरोटाइप का डेंगू डेन2 सेरोटाइप और डेन4 सेरोटाइप के मुकाबले कम खतरनाक होता है। इस साल डेन2 और डेन4 ही ज्यादा देखने को मिल रहा है। एम्स के अनुसार पहली बार ऐसा हुआ है कि डेन4 सेरोटाइप वाला डेंगू दिल्ली में सबसे ज्यादा फैल रहा है। इसका साथ डेन2 सेरोटाइप का डेंगू दे रहा है। 
घर में डेंगू मरीज की देखभाल
100 डिग्री तक बुखार है तो दवा की जरूरत नहीं है। बुखार और शरीर दर्द को मैनेज करने के लिए पैरासिटामॉल दें। बुखार होने पर मरीज को हर 6 घंटे में पैरासिटामोल की एक गोली दें। यह मार्केट में क्रोसिन (Crocin), कालपोल (Calpol) आदि ब्रैंड नेम से मिलती है। दूसरी कोई गोली डॉक्टर से पूछे बिना न दें। किसी भी बुखार में एस्प्रिन (डिस्प्रिन आदि), कॉम्बिफ्लेम, निमोस्लाइड, ब्रूफेन आदि बिल्कुल न लें। अगर बुखार 102 से ऊपर है तो मरीज के शरीर पर सामान्य पानी की पट्टियां रखें। पट्टियां तब तक रखें, जब तक शरीर का तापमान कम न हो जाए। ठंडे पानी की पट्टियों या स्पंज बाथ से बुखार बहुत जल्दी उतर जाएगा। मरीज को ठंडी जगह पर आराम करने दें। एसी या कूलर चलाएं रखें। मरीज को नहाना बंद नहीं करना चाहिए। नॉर्मल पानी या हल्के गुनगुने पानी से नहाना बेहतर है। उसे जबरन चादर ओढ़ने को न कहें। पसीना आने पर बुखार चला जाता है, यह सोच सही नहीं है। मरीज का खाना बंद न करें। वह जो खाना चाहते हैं, खाने दें। पानी खूब पिलाएं। साथ में नीबू पानी, छाछ, लस्सी, दूध, जूस, नारियल पानी आदि भी भरपूर दें। रोज तकरीबन 4-5 लीटर लिक्विड लें। हर 2 घंटे या उससे पहले भी कुछ-न-कुछ लिक्विड जरूर लें। डेंगू में हालात तभी खराब होते हैं जब शरीर में पानी की कमी हो जाती है। तकरीबन हर 3-4 घंटे में पेशाब आना खतरे से बाहर रहने की निशानी है। बुखार के वक्त मरीज के सांस फूलने की स्थिति पर ध्यान दें। खासतौर पर तब जब पेशंट को बुखार न हो। अगर बु्खार न होने पर भी पेशंट की सांस फूल रही है तो उसे डॉक्टर के पास ले जाएं। डेंगू पहली बार में उतना खतरनाक नहीं होता, जितना दोबारा होने पर होता है। जिन्हें पहले डेंगू हो चुका है, वे खासतौर पर बचाव पर ध्यान दें। जब तक तेज बुखार है तो डरने की जरूरत नहीं। डेंगू में कई बार चौथे-पांचवें दिन बुखार कम होने पर प्लेटलेट्स गिरने लगते हैं। बुखार खत्म होने के 3-4 दिन बाद भी एक बार प्लेटलेट्स काउंट टेस्ट करा लें। डेंगू के मरीज को मच्छरदानी के अंदर रखें ताकि मच्छर उसे काटकर दूसरों में बीमारी न फैलाएं। डेंगू से डरने की जरूरत नहीं है।
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चोट लगने पर न करें इन गलतियों को

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‘जले पर झट से घी लगा दो, जिससे ठंडक मिले।’ हम ऐसे ही कई नुस्ख़ों पर पर विश्वास करके तुरंत इलाज करने लग जाते हैं, लेकिन इसके जैसी और कई सारी ग़लतियों के कारण मरीज की मुसीबत बढ़ सकती है। इन सभी गलतियों को करने से बचने के लिए पढ़ें ये आलेख :
जलने पर सिर्फ़ पानी की ठंडक
रसोई में काम करते वक़्त हाथ जलने पर कई लोग ठंडक पाने के लिए जले पर मक्खन, घी या तेल लगा लेते हैं। इससे इन्फेक्शन फैल सकता है और टूथपेस्ट के रसायन घाव बढ़ा भी सकते हैं।

सही तरीक़ा- जलन शांत करने के लिए ठंडे पानी में कुछ देर हाथ डालकर रखें। जलन शांत होते ही घाव पर मलहम लगाएं, पर पट्टी क़तई न बांधें। घाव गम्भीर हो, तो तुरंत डाॅक्टर को दिखाएं, क्योंकि जलने पर नाज़ुक हो चुकी त्वचा में 48 घंटे के भीतर इन्फेक्शन तेजी से फैलता है।

नाक से ख़ून बहना
नकसीर फूटने पर सिर को पीछे की ओर झुकाकर लेटने से नाक से निकलने वाला ख़ून बंद नहीं होता, बल्कि यह ब्लड फेफड़ों में भी जा सकता है। इससे मरीज़ की जान को ख़तरा हो सकता है।
सही तरीक़ा- नकसीर फूटने के लिए शरीर में बढ़ गई गर्मी जि़म्मेदार होती है, इसलिए मरीज़ का सिर गीला करें और उसे ठंडे वातावरण में लिटा दें। इस दौरान तकिया न लगाएं और न ही सिर को पीछे की ओर झुकाकर रखें। बहता ख़ून रोकने के लिए 5-10 मिनट अंगूठे और उंगली से नाक बंद करें और मुंह से सांस लें। ये उपाय अपनाने के बावजूद 30 मिनट के भीतर समस्या हल न हो, तो तुरंत डॉक्टर से सम्पर्क करें।

चोट लग गई या कट गया?
हम हमेशा बच्चों की चोट को पानी से धोकर, एंटीसेप्टिक लोशन लगाकर पट्टी बांध देते हैं, पर इससे घाव बढ़ भी सकता है।
सही तरीक़ा- चोट को सादे के बजाय एंटीसेप्टिक मिले पानी से धोएं, फिर उस पर एंटीसेप्टिक लोशन और दवा लगाएं। पट्टी बांधनी है या नहीं यह चोट को देखकर तय करें। खरोंच आई है, तो उसे खुला ही रहने दें। वहीं गहरे घाव पर पट्टी बांधें, ताकि धूल-मिट्टी या हवा के सम्पर्क में आने के कारण इन्फेक्शन न बढ़े। कई बार ड्रेसिंग में इस्तेमाल हुई रूई इन्फेक्टेड होने के कारण घाव बढ़ देती है, इसलिए फर्स्ट एड बॉक्स की रूई को हमेशा एयरटाइट डिब्बे या पॉलीथिन में सील पैक करके रखें। इसके अलावा हर महीने फर्स्ट एड बॉक्स में रखी दवाइयों की एक्सपायरी डेट जांचें और आवश्यकतानुसार उन्हें बदलें।

इनका भी रखें ख़्याल
गहरा कटने पर ख़ून रोकने के लिए पट्टी ज़रूर बांधें पर बहुत कसी हुई नहीं, अन्यथा चोट के आसपास के टिश्यूज़ डैमेज होने के कारण सूजन और दर्द बढ़ेगा।
दुर्घटना में घायल व्यक्ति को हाथ-पैर पकड़कर न उठाएं। इस दौरान उसके फेफड़ों, गर्दन या रीढ़ की हड्डी में आई चोट गम्भीर रूप ले सकती है। इसलिए घायल के हाथों को सामने की ओर सीधा रखें और पूरे शरीर को सहारा देते हुए उठाएं। बेहोश व्यक्ति की आंखों पर पानी के छींटें मारने से कोई फ़ायदा नहीं होगा, उसे ठंडे वातावरण में लिटाएं और आवाज़ देकर जगाने की कोशिश करें। जल्द होश न आए, तो डॉक्टर से सम्पर्क करें।
हार्टअटैक आने पर मरीज़ को घर से बाहर तक चलाकर या लिफ़्ट पर खड़ा कर ले जाने की ग़लती न करें। उसे जल्द से जल्द सीधा लिटा दें और गोद में उठाकर गाड़ी तक ले जाएं।

खुजली से हैं परेशान तो छुटकारा दिलाने में मददगार हैं ये आसान से उपाय

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खुजली एक त्वचा रोग है। खुजली के लिए सबसे कारगर उपाय है तेल की मालिश, जिससे रूखी और बेजान त्वचा को नमी मिलती है। खुजली से परेशान लोगों को चीनी और मिठाई नहीं खाना चाहिए। परवल का साग, टमाटर, नींबू का रस आदि का सेवन लाभदायक होता है। अगर आपकी स्किन का कोई हिस्सा लाल हो गया है और उसमें बहुत खुजली होती है, तो बिना देरी किए हुए अपने डॉक्टर से मिलें।
खुजली होने पर सबसे पहले सावधानी के तौर पर सफाई का पूरा ध्यान रखिए।
साबुन का प्रयोग जितना भी हो सकता है, कम कर दें।

कभी त्वचा को सुगंधित पदार्थों,. क्रीम, लोशन, शैंपू, जूतों या कपड़ों में पाए जाने वाले रसायनों से भी एलर्जी हो जाती है।
अगर आपको कब्ज है तो उसका भी
इलाज करवाएं।

हफ्ते में दो बार मुल्तानी मिट्टी और नीम की पत्ती का लेप लगाएं, उसके बाद साफ पानी से शरीर को धो लें।
थोड़ा सा कपूर लेकर उसमें दो बड़े चम्मच नारियल का तेल हल्का सा गरम करके मिलाकर खुजली वाले स्थान पर नियमित लगाने से लाभ मिलता है।

यदि जनेंद्रिय पर खुजली की शिकायत हो, तो गर्म पानी में फिटकरी मिलाकर लगाएं।
नारियल तेल का दो चम्मच लेकर उसमें एक चम्मच टमाटर का रस मिलाइए। फिर खुजली वाले स्थान पर भली प्रकार से मालिश करिए। उसके कुछ समय बाद गर्म पानी से स्नान कर लें। एक सप्ताह ऐसा
लगातार करने से खुजली मिट जाएगी।

यदि गेहूं के आटे को पानी में घोलकर उसका लेप लगाया जाए, तो अनेक प्रकार के चर्म रोग, खुजली, टीस, फोड़े-फुंसी के
अलावा आग से जले हुए घाव में भी राहत मिलती है।

सवेरे खाली पेट 30-35 ग्राम नीम का रस पीने से चर्म रोगों में लाभ होता है, क्योंकि नीम का रस रक्त को साफ करता है।

महिलाओं में पाई जाने वाली यह एक आम समस्या है तथा ऐसी कोई भी महिला नहीं होगी जिसको अपने जीवनकाल में जननांग में खुजली की समस्या का सामना न करना पड़ा हो। जननांग या योनि की खुजली आपको कमजोर बनाती है विशेष रूप से तब जब आप काम के सिलसिले में बाहर हों तथा खुजली पर नियंत्रण न कर पा रही हो ।

 ये है कारण

1. पैड्स का इस्तेमालः जननांगों में खुजली के कई कारण हो सकते हैं । इसका सबसे आम कारण यीस्ट संक्रमण या मासिक धर्म के समय उपयोग में लाए जाने वाले पैड्स में उपस्थित केमिकल्स हो सकते हैं ।

2  बहुत अधिक कसे हुए कपडे पहननाः बहुत अधिक कसे हुए कपडे पहनने से भी योनि की खुजली की समस्या हो सकती है ।

3. सैक्स संबंधः सैक्स संबंध बनाने के बाद स्वच्छता की ओर ध्यान न देना भी योनि में खुजली का कारण बन सकता है ।

                                                 मासिक धर्म से संबंधित साफ-सफाई के 10 टिप्स 

जब खुजली की समस्या हमेशा के लिए हो जाती है तो आप दवाईयों के अलावा अन्य उपायों पर भी विचार करते हैं। सौभाग्य से घरेलू उपचार भी उतने ही प्रभावकारी हैं जितनी बाज़ार में मिलने वाली दवाईयां। यहां इस समस्या से निपटने के लिए कुछ घरेलू उपचार बताए गए हैं जिनका उपयोग करके आप इस समस्या से छुटकारा पा सकते हैं।

 
1.  ऐप्पल सीडर विनेगर में एंटीबैक्टीरियल और एंटी फंगल गुण होते हैं। यदि योनि की खुजली बैक्टीरियल या फंगल संक्रमण के कारण है तो ऐप्पल सीडर विनेगर से उसे दूर किया जा सकता है।  ऐप्पल सीडर विनेगर का लाभ उठाने के लिए दो चम्मच ऐप्पल सीडर विनेगर को गर्म पानी में मिलाएं। दो तीन दिन तक दिन में दो बार योनि को इस मिश्रण से धोएं।
 
2. योनि की खुजली रात के समय अधिक बड़ी समस्या बन जाती है। इसे रोकने के लिए योनि पर सीधे ही बर्फ लगाएं । 

3. नमक में एंटीबैक्टीरियल गुण होता है जो खुजली तथा बैक्टीरिया को प्रभावी रूप से दूर कर सकता है। जब भी आपको खुजली महसूस हो तब नमक के गाढ़े घोल से योनि को धो लें। इससे आपको तुरंत आराम मिलेगा और यह बैक्टीरिया को आगे बढ़ने से भी रोकेगा। 

4. लहसुन की कलियां चबाकर खाएं या लहसुन का पेस्ट बनाएं तथा जाली के एक कपड़े में इसे बांधकर योनि के अंदर लगाएं। इससे दुर्गन्ध आ सकती है परंतु इससे मिलने वाला आराम बहुत आश्चर्यजनक होता है

 5. योनि की खुजली के उपचार के लिए प्रतिदिन एक कप बिना शक्कर वाला दही खाएं।  खुजली वाली जगह पर सीधे दही लगाने से योनि की खुजली तुरंत बंद हो जाती है । नियमित उपयोग से इस समस्या से हमेशा के लिए छुटकारा पाया जा सकता है ।

6. एंटीबैक्टीरियल पाउडर हर्बल तथा मेडिकेटेड दोनों प्रकारों में उपलब्ध है । योनि की नमी के कारण उत्पन्न होने वाले बैक्टीरिया को खत्म करने के लिए तथा किसी भी फंगल संक्रमण को दूर करने के लिए योनि में इस पाउडर को लगाएं ।

7.रोज़मेरी (मेहंदी) की पत्तियों को 15 मिन्ट पानी में भिगोएं तथा ठंडा होने दें । योनि को इस हर्बल घोल से धोएं तथा तुरंत फर्क महसूस करें ।
8.योनि को सूखा रखें पसीने और पानी के कारण यदि योनि में नमी रहती है तो इससे उस स्थान पर बैक्टीरिया और फंगस पैदा होते हैं जिसके कारण संक्रमण और शर्मिन्दगी पैदा करने वाली स्थिति उत्पन्न होती है । हमेशा ध्यान रखें कि संक्रमण को रोकने के लिए योनि को नमी से मुक्त रखें ।

9.ढीले कपड़े पहनें इलाज से बेहतर है रोकथाम करना । 

10.नीम की पत्तियों को उबालकर, उस पानी से स्नान करने से शरीर और त्वचा में मौजूद कीटाणु समाप्त हो जाते हैं, और खुजली होने की परेशानी से निजात मिलती है।

11. लहसुन की कुछ कलियां लेकर उसे सरसों के तेल में डालकर गर्म करें। जब वे कलियां पूरी तरह से जल जाए, तो उस तेल को छानकर, पूरे शरीर में उसकी मालिश करें। खुजली में लाभ होगा।

12.तिल या फिर सरसों के तेल को गर्म करके ठंडा कर, उसे तेल से की गई मालिश से विकार खत्म होकर, खुजली की समस्या में राहत मिलती है।

13.पारा और आंवलासार गंधक की कजली, नीला थोथा, हल्दी, मेंहदी, तीवा, अजवाइन और मालकंगनी को मिलाकर चूर्ण बना लें और घी के साथ पिघलाया हुआ मोम डालकर, गाय के घी में एक दिन तक घोटकर लगाने से खुजली ठीक हो जाती है।

14.सरसों के तेल में आक के पत्तों का रस और हल्दी की लुगदी बनाकर डालें। इसे गर्म कर ठंडा करें और खुजली होने पर इस्तेमाल करें।

15.सेंधा नमक, पंवार के बीज, सरसों और पिप्पली को कांजी में महीन पीसकर, खुजली वाले स्थान पर इसका लेप करने से खुजली ठीक हो जाती है।

16.तीन ग्राम जीरा और 15 ग्राम सिंदूर को पीसकर, सरसों के तेल में पकाएं। अब इस तैयार लेप को खुजली वाले स्थान पर लगाएं। इस लेप के प्रयोग से खुजली समाप्त हो जाती है।

दुबलेपन की समस्या को दूर करने के टिप्स

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एक तरफ जहां दुनिया के 70 प्रतिशत लोग वजन बढ़ने से परेशान हैं, तो वहीं 20 प्रतिशत अपने दुबलेपन से परेशान हैं। सिर्फ 10 प्रतिशत लोग ही हेल्दी लाइफ एन्जॉय कर रहे हैं। कमजोरी से फर्क सबसे पहले शरीर के बाहरी हिस्से पर दिखता है। हड्डियां दिखने के साथ ही गाल अंदर की ओर धंसते चले
जाते हैं और धीरे-धीरे कमजोर शरीर कई प्रकार की बीमारियों से भी ग्रस्त हो जाता
है। तो ऐसे में क्या खाएं, कौन-सी एक्सरसाइज अपनाएं, जिससे कम समय में दुबलेपन से छुटकारा मिले।
 इन सभी प्रॉब्लम्स के लिए दिए जा रहे हैं कुछ टिप्स....
दुबलेपन की समस्या को दूर करने के टिप्स
1. दिन की शुरुआत हल्के-फुल्के एक्सरसाइज और योग से करें, क्योंकि इससे भूख बढ़ती है।
2. एक्सरसाइज के तौर पर मॉर्निंग वॉक भी किया जा सकता है। फ्रेश एयर के साथ ही मेटाबॉलिज्म भी सही रहेगा।
3. ब्रेकफास्ट में दूध, मक्खन और घी का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करें। हेल्दी रखने के साथ ही ये वजन बढ़ाने में मददगार होते हैं।
4. प्रोटीन एनर्जी का अच्छा स्रोत होता है। इसके लिए दाल, फिश, चिकन, मटन और अंडा खाना ठीक रहेगा।
5. किशमिश रात में भिगों दें और सुबह खाएं। दो-तीन महीने में फर्क नजर आने लगेगा। साथ ही, किशमिश फैट को हेल्दी कैलोरी में बदलने का काम करता है।
6. दुबलेपन को दूर करने के लिए अखरोट खाना भी अच्छा ऑप्शन रहेगा, क्योंकि इसमें मोनो अनसैचुरेटेड फैट होता है। यह काफी फायदेमंद होता है।
7. केले को संपूर्ण आहार माना गया है। रोजाना तीन-चार केले खाने से जल्द ही फर्क दिखाई देने लगता है।
8. आलू की मात्रा को भी खाने में बढ़ाएं। आलू कार्बोहाइड्रेट का खजाना है। इसे खाकर जल्द ही वजन बढ़ाया जा सकता है।
9. कुछ दिनों के लिए खाने को सरसों और रिफाइंड तेल में न पकाकर नारियल तेल में पकाएं। नारियल तेल भी दुबलेपन की समस्या को दूर करने में फायदेमंद होती है।
10. डेयरी प्रोडक्ट्स जैसे दूध, दही और पनीर में फैटी एसिड्स मौजूद होते हैं और साथ ही बहुत ज्यादा मात्रा में कैलोरी भी। अलग-अलग तरीकों से इनका ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल करें।
11. वजन बढ़ाने के लिए चाय, कॉफी, शराब, सिगरेट आदि से दूर रहना बहुत जरूरी है।
12. भरपूर नींद लें। 7-8 घंटे की नींद लेने से वजन बढ़ाने में मदद मिलती है।
13. खजूर को या छुहारे को दूध में उबालें। रात को सोने से पहले अच्छे से चबाकर खाएं और दूध पी लें। दो-तीन महीने तक लगातार खाने से फायदा होगा।
14. दूध में शहद डालकर पीना भी फायदेमंद होता है।
15. कब्ज, अपच और गैस की समस्या होने पर डॉक्टर से संपर्क करें, क्योंकि कई बार कमजोरी के पीछे ये कारण भी होते हैं।
दुबलेपन का कारण
कमजोरी शरीर के पीछे कई वजहें होती हैं, जिन्हें जानना बहुत ही जरूरी है।
1. ज्यादातर इसके पीछे वंशानुगत समस्या होती है, जिसे हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाकर काफी हद तक सॉल्व किया जा सकता है।
2. ब्लड की कमी होने से भी दुबलेपन की समस्या हो सकती है।
3. एक्सरसाइज करते वक्त समय और पोजिशन का खास ध्यान रखें।
4. हॉर्मोन्स की गड़बड़ी से भी शरीर कमजोर होने लगता है।
5. स्ट्रेस, किसी प्रकार की चिंता और नींद की कमी एकदम से घटते वजन के पीछे की वजह होती है।

हमारे शरीर के 10 गैर ज़रूरी अंग।

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मानव शरीर तमाम अंगों, हड्डियों, कोशिकाओं, धमनियों के संयोजन से बना है। जिसका हर एक हिस्सा बेहद जरुरी है। पर पुराने इंसानों और आधुनिक मानव के बीच विकास का इतना फासला आ चुका है कि मानव शरीर के 10 अंग अब किसी काम के नहीं रह गए हैं।
1: अपेंडिक्स: इंसान को जीने के लिए खाने की जरुरत पड़ती है। और खाने को पचाने के लिए शरीर में छोटी-बड़ी आंते होती हैं। अपेंडिक्स का यूं तो कोई खास काम नहीं, है भी तो छोटा सा। पर ये अंग पथरी रोग बढ़ाने में जरुर सहायक है। जिसकी वजह से असहनीय पीड़ा होती ही है, सही समय पर इलाज न होने पर जान जाने का भी खतरा रहता है।
2:  इंसानी पूंछ: ये गैरजरुरी अंग है। इसे मानव इतिहास से भी जोड़कर देखा जाता है, जिसमें वन मानुषों को मानव का पूर्वज बताया जाता है।
3: पैरानसल साइनस: सांस लेते समय जो दबाव नाक में महसूस होता है, वो इसी की वजह से है। पर इससे कोई वैज्ञानिक लाभ मानव शरीर को नहीं मिलता। हां, कुछ प्रयोगों में इसे आवाज से जोड़ देखा जाता है, गाते समय हवा की गति को नियंत्रित करता है।
4: टोंसिल्स: टोंसिल मलतब गालों का अंदरुनी हिस्सा। टोंसिल्स मुंह में दोनों तरफ अक्ल दांत के बगल में होता है। जो मांस के टुकड़े के रूप में है। इसकी वजह से मुंह में इंफेक्शन तेजी से फैलता है। क्योंकि यहां कीटाणुओं को सुरक्षित जगह मिल जाती है।
5:  एरेक्टर पिली मस्कल्स: ये हिस्सा रोमछिद्रों से जुड़ा होता है। माना जाता है कि इसे शरीर के ताप को नियंत्रित रखने में मदद मिलती है। अब जबकि मानव शरीर पर बाल बहुत कम होते हैं ऐसे में इस अंग की भी कोई खास जरुरत नहीं जान पड़ती।
6: अक्ल का दांत: ये दांत 17 से 25 साल की उम्र में निकलता है। जिसके निकलने के समय बहुत दर्द होता है। एक तरफ मानव का सर छोटा होता जा रहा है, तो दूसरी तरफ अक्ल के दांत की भी कोई जरूरत नहीं दिखती। क्योंकि मानव का खानपान पूरी तरह से बदल गया है। और फिर अक्ल का दांत खराब भी जल्दी होता है।
7: पलमेरिज मांसपेशी: ये मांसपेशी हाथ में होती है, जो पकड़ बनाने के दौरान काम करती है। एक रिसर्च के मुताबिक दुनिया की 14 फीसदी आबादी के हाथों में से ये मांसपेशी गायब हो चुकी है। और उन्हें किसी भी चीज को पकड़ने में दिक्कत नहीं होती। इस मांसपेशी को महसूस करना हो तो आप सबसे छोटी उंगली को हथेली से छुआने की कोशिश करें।
8: प्लिका सेमिलुनारिस या नेत्रझिल्ली: इसे तीसरी आंख भी करते हैं। क्योंकि जोर देकर आंखो को मिलाने पर तीसरी आंख के खुलने सा आभास होता है। प्लिका सेमिलुनारिस आंखों को दिशा देने का काम करती है।
9: सबक्लैवियस मांसपेशी: ये मांसपेशी हमारे सीने पर फेफड़े की हड्डियों के ऊपर होती है। जो कंधे को बैलेंस करती हैं। ये मांसपेशियां मानव के 4 पैरों पर चलने के समय बेहद उपयोगी थी। पर अब इसका कुछ खास इस्तेमाल नहीं है। मौजूदा समय में बहुत सारे लोगों में ये मांसपेशी होती ही नहीं।
10: पुरुष स्तन: पुरुष स्तन का मानव शरीर में कोई काम नहीं है। गर्भ के 6वें सप्ताह में ही पता चल जाता है कि गर्भस्थ शिशु बालक होगी या बालिका। और इसी समय बालक गर्भ में इसका विकास रुक जाता है। वैसे, पुरुष स्तन का तो कोई काम है नहीं, पर ये पुरुषों में स्तन कैंसर का जरिया जरुर बन जाती है।